लगभग एक साल के बाद उसका फोन आया।
जी भरकर लड़ी........ जी भरकर रोई।
फिर रखते-रखते बोली हर बार की तरह इस बार भी व्रत थी और तुम्हारी आवाज़ से व्रत तोड़ रही हूँ, ख़ैर मेरे कुछ और कहने से पहले ही उसने फ़ोन रख दिया।
फिर रखते-रखते बोली हर बार की तरह इस बार भी व्रत थी और तुम्हारी आवाज़ से व्रत तोड़ रही हूँ, ख़ैर मेरे कुछ और कहने से पहले ही उसने फ़ोन रख दिया।
कैसे समझाता उसे इंतज़ार उसके फ़ोन का ही था। कहना था उससे कि भूखी रहकर कितनी दफ़ा मेरी उम्र यूँ ही बढाती रहोगी? उम्र ही बढ़ानी है तो क्यों नही मान लेती कि मैंने तुम्हे कभी छोड़ा ही नही था, क्यों नही मान लेती कि अपने आप कुछ भी कहानी बनाकर तुम्हें यूँ मुझे गलत न समझना था। किसी और का हाथ थामने से पहले क्यों नही माना कि मैं तुम्हें कभी छोड़ ही नही सकता था।
किस प्यार में लड़ाइयां नही होती है, किसे गुस्सा नही आता है, फिर तो तुम भी जानती थी कि मुझे प्यार और गुस्सा दोनों बराबर आता है, पर कभी नही कॉल करने की कसम खाना तुमने मुझे मनाने से ज़्यादा जरुरी समझा। क्या करूं अब तुम्ही बताओ कैसे छीनने आऊँ तुम्हे जब तुम किसी और की हो चुकी हो, ये कहना कब बन्द करोगी कि अब भी हर वक़्त तुम्हे मैं ही महसूस होता हूँ, चाँद के निकलते ही क्यों फ़ोन करती हो हर बार की तरह, भूल जाओ न उन बातों को जब मैं अक्सर चाँद निकलने से पहले तुम्हे ड्रेसिंग टेबल के सामने ले जाकर तुम्हारा व्रत पूरा करवा दिया करता था, कब तक इसको याद रखोगी।
मुझे पता है मुझ जैसा प्यार पाना अब तुम्हें नसीब न होगा न मुझे :(
पर मैं क्या करूँ मेरे गुस्से से ज़्यादा तो तुम्हारी हठ ने सारे हक़ छीन लिए न। एक बार भी तुमने कुछ जानने की कोशिस न की, हाँ तुम्हारे लिए तो तुम्हारी कसमें जरुरी थी न, पर अब इन व्रतों का क्या मतलब जब तुम्हे हर बार सोचकर मैं मर सा जा रहा हूँ।
आज तुम अपनी ज़िन्दगी से जुडी हर एक बात के लिए मुझे दोषी बनाती हो,
पर वो कसमें तुम याद तो रखती जो हमने ली थी कि मैं तुम्हें बेशुमार इश्क़ करूँगा तो तुम मेरा बेहिसाब गुस्सा सहोगी। तुमने ही तो बोला था कि तुम मेरे अंदर से मेरे गुस्से को छूमंतर कर दोगी पर तुमने कुछ ग़ायब किया भी तो वो सपने जो हमने साथ देखे थे।
अब क्या करूँ तुम ही बोलो, थक-हारकर ग़लतफ़हमी जानकर तुमने ही कॉल किया न, झूठी हो गयी न ये तुम्हारी कसमें, क्या मिला तुमको ये सब करके, हाँ बस दूर खुद को मुझसे जरूर कर लिया है, तो अब क्यों लड़ती हो, क्यों ताने मारती हो, मैं गलत था तो मैंने मान लिया पर तुम कब मानोगी कि गलती तुम्हारी थी, पर मुझे पता है मानोगी नही।
तो अब लड़ने मत आया करो, तुमको लेकर मैं रोज़ खुद से हर दफ़े लड़ते आ रहा हूँ, अब तो ये जंग हार जाने दो और हाँ इस बार के करवा चौथ पर भी तुम्हें तुम्हारा पसंदीदा गिफ़्ट दे रहा हूँ, "इस बार भी मैं अकेला हूँ सिर्फ़ तुम हो मुझे में किसी का हाथ नही थामा मैंने, तुमसे हाथ जो न छुड़ा पा रहा हूँ जो मैं।" चल अब एक बार उन चूड़ियों की खनक तो सुना दे जो मैंने तुम्हें हमारे पहले करवा चौथ पर दी थी..................क्योंकि करवा चौथ तो अब कहीं बैठकर अलग-अलग चाँद निहारना भर रह गया है।
.. कुमार शशि..... #dedicated ♡My Love♡ #_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡
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