​वो शख़्स धीरे धीरे साँसों में आ बसा है....✍ - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
बन के लकीर हर इक, हाथों में आ बसा है
वो मिले थे इत्तेफ़ाक़न हम हंसे थे इत्तेफ़ाक़न
अब यूं हुआ के सावन आँखों में आ बसा है
काफ़ी थे चंद लम्हे तेरे साथ के सितमगर
ये क्या किया है तूने ख़्वाबों में आ बसा है
अब तो वो ही है साहिल, तूफ़ान भी वो ही है
कुछ इस तरह से दिल की मौजों में आ बसा है
उम्मीद-ओ-हौंसला भी, रिश्ता भी है, ख़ला भी
वो ज़िंदगी के सारे नामों में आ बसा है
कुछ रफ़्ता रफ़्ता आता, मुझको पता तो चलता
वो शख़्स एक दम ही आहों में आ बसा है
उस की पहुंच गज़ब है, वो देखो किस तरह से
दिन में भी आ बसा है रातों में आ बसा है
क्या बोलता हूं 'कुमार शशि' के पूछती है दुनिया
वो कौन है जो तेरी बातों में आ बसा है
... कुमार शशि®™..... 
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡

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