अपने घर के बड़े..✍ - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
​ये जो "छोटू" होते हैं न ?
जो चाय दुकानो या होटलों 
वगैरह में काम करते हैं ---
वास्तव में ये अपने घर के 
"बड़े" होते हैं ---
कल मे एक ढाबा पर डिनर करने गया
वहा एक छोटा सा लडका था जो ग्राहको
को खाना खिला रहा था कोई ऎ छोटू
कह कर बुलाता तो कोई ओए छोटू
वो नन्ही सी जान ग्राहको के बीच जैसे
उल्झ कर रह गयी हो 
यह सब मन को काट रहा था मैने छोटू
को छोटू जी कहकर अपनी तरफ बुलाया
वह भी प्यारी सी मुस्कान लिये मेरे पास
आकर बोला साहब जी क्या खाओगे
मैने कहा साहब नही भाईयाँ जी बोल 
तब ही बताऊगाँ वो भी मुस्कुराया और
आदर के साथ बोला भाईयाँ जी आप 
क्या खाओगे 
मैने खाना आर्डर किया और खाने लगा
छोटू जी के लिये अब मे ग्राहक से जैसे 
मेहमान बन चुका था वो मेरी एक आवाज
पर दौडा चला आता और प्यार से पूछता
भाईयाँ जी और क्या लाये 
खाना अच्छा तो लगा ना आपको???
और मै कहता हाँ छोटू जी आपके इस 
प्यार ने खाना और स्वादिष्ट कर दिया
खाना खाने के बाद मैने बिल चुकाया 
और 100 रू छोटूजी की हाथ पर रख
कहा ये तुम्हारे है रख लो और मलिक से
मत कहना है वो खुश होकर बोला जी 
भईया
फिर मैने पुछा क्या करोगो ये पैसो का
वो खुशी से बोला आज माँ के लिये 
चप्पल ले जाऊगाँ 4 दिन से माँ के पास 
चप्पल नही है नग्गे पैर ही चली जाती 
है साहब लोग के यहाँ बर्तन माझने 
उसकी ये बात सुन मेरी आँखे भर आयी
मैने पुछा घर पर कौन कौन है
तो बोला माँ है मै और छोटी बहन है
पापा भगवान के पास चले गये
मेरे पास कहने को अब कुछ नही रह
गया था मैने उसको कुछ पैसे और दिये
और बोला आज आम ले जाना माँ के 
लिये और माँ के लिये अच्छी सी चप्पल
लाकर देना और बहन और अपने लिये
आईसक्रिम ले जाना 
और अगर माँ पुछे किस मे दिया तो कह
देना पापा ने एक भईयाँ को भेजा था वो
दे गये 
इतना सुन छोटू मुझसे लिपट गया और 
मैने भा उसको अपने सीने से लगा लिया
वास्तव ने छोटू अपने घर का बडा निकला
पढाई की उम्र मे घर का उठा रहा है..
.. कुमार शशि®™.....
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡

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