चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है शम्स फ़र्रुख़ाबादी - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
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चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है शम्स फ़र्रुख़ाबादी

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चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है 

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2018-09-16_144736

चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है
हम ने हर सुब्ह इक उम्मीद पे दर खोला है

मैं भटकता रहा सड़कों पे तिरी बस्ती में
कब किसी ने मेरी ख़ातिर कोई घर खोला है

हो गई और भी रंगीं तिरी यादों की बहार
खिलते फूलों ने मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर खोला है

उन की पलकों से गिरे टूट के कुछ ताज-महल
नींद से चौंक के जब दीदा-ए-तर खोला है

यार मेरा तो मुक़द्दर है वो चादर जिस ने
पाँव खोले हैं कभी और कभी सर खोला है

रात भारी कटी शायद गए दिन लौट आए
'शम्स' ने परचम-ए-उम्मीद-ए-सहर खोला है


#शम्स फ़र्रुख़ाबादी

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