अब तो चलना ही पड़ेगा रास्ता जैसा भी है इफ़्तिख़ार नसीम - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
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अब तो चलना ही पड़ेगा रास्ता जैसा भी है इफ़्तिख़ार नसीम

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मिशअल-ए-उम्मीद थामो रहनुमा जैसा भी है

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इफ़्तिख़ार नसीम

  • 1946-2011

पाकिस्तान के 'गे' शायर जो अमेरिका में रहते थे।








इफ़्तेख़ार नसीम 15 सितम्बर 1946 को फैसलाबाद में पैदा हुए. उनके पिता ख़लीक़ क़ुरैशी प्रसिद्ध पत्रकार थे और दैनिक ‘अवाम’ के मालिक-सम्पादक थे. इफ़्तेख़ार नसीम 1971 में देश छोड़कर अमेरिका चले गये. अमेरिका में उन्होंने समलैंगिकों के अधिकार के लिए व्यावहारिक संघर्ष किया. इफ़्तेख़ार नसीम की गिनती शिकागो में पाकिस्तानी समुदाय के लोकप्रिय और सक्रीय  व्यक्तियों में होती थी. उन्होंने संगत रेडियो के नाम से एक ऍफ़.एम. चैनल भी स्थपित किया था.

इफ़्तेख़ार नसीम के इस नये और बदले हुए ज़ेहन का असर उनकी शाइरी  में साफ़ नज़र आता है. उनकी ग़ज़लें नई ज़िन्दगी और नये मसाइल से पैदा होनेवाले एहसास से परिपूर्ण हैं. इफ़्तेख़ार नसीम के काव्य संग्रह ‘ग़ज़ाल’ ‘मुख़्तलिफ़’ ‘ एक थी लड़की’ और ‘आबदोज़’ के नाम से प्रकाशित हुए. अफ़सानों का मजमुआ ‘शबरी’ के नाम से छपा. अख़बारों में उनके कालम भी बहुत दिलचस्पी से पढ़े जाते थे.
22 जुलाई 2011 को शिकागो में देहांत हुआ.


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मिशअल-ए-उम्मीद थामो रहनुमा जैसा भी है
अब तो चलना ही पड़ेगा रास्ता जैसा भी है

किस लिए सर को झुकाएँ अजनबी के सामने
उस से हम वाक़िफ़ तो हैं अपना ख़ुदा जैसा भी है

किस को फ़ुर्सत थी हुजूम-ए-शौक़ में जो सोचता
दिल ने उस को चुन लिया वो बेवफ़ा जैसा भी है

सारी दुनिया में वो मेरे वास्ते बस एक है
फूल सा चेहरा है वो या चाँद सा जैसा भी है

फ़स्ल-ए-गुल में भी दिखाता है ख़िज़ाँ-दीदा-दरख़्त
टूट कर देने पे आए तो घटा जैसा भी है

#इफ़्तिख़ार नसीम

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