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आज सोचा कोई नज़्म लिखूं लेकिन शब्द हैं की अब उस शक़्स की तरह साथ नहीं देते। शेर लिखने की कोई कोशिश जो करूँ तो मेरी कलम आंसुओं में डूब जाती है।
वो हार कर मेरा कोई मिसरा लिख देने की चाहत और हर एक मिसरे का तुम्हारे नाम के साथ ख़त्म होना....मजबूरन मुझे कागज़ को अधूरा छोड़ देना पड़ता है।
कैसा अजीब सा लम्हा है ये मेरी जिंदगी का, क्यूँ नहीं तुम मेरी जिंदगी से अपने नाम के हर लम्हे को अपने साथ ले गए।
इन्हें भी ठीक अपने साथ वैसे ही ले जाते जैसे तुम मेरी सोच ले गए...
तो शायद आज न मेरी कलम रोती
न मेरी ग़ज़ल मरती
न ही मेरी जिंदगी में मुहब्बत का हर पन्ना अधूरा होता..
..... कुमार शशि.....
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡
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