उसे बना कर ग़ज़ल मै सुबह ओ शाम लिखता रहा
हकीकत की हर घरी मैं उसे सलाम लिखता रहा
हकीकत की हर घरी मैं उसे सलाम लिखता रहा
वो मेरी मुहबत को मेरा जनून समाज बेठी
में नाम इ मुहबत को बार बार लिखता रहा
कर लो इकरार -इ -दिलगी मुज से ये कहा उस से मेने
अजब शख्स थी मुझे ही बेवफा लिखती रही
उसकी आरजू ये थे के "भूल जाओ मुझे "
में हर दिवार पर इश्क की इन्तहा लिखता रहा
ज़ुल्म सहना हे तो इश्क की मिराज है -तनहा -
व बदनाम करती रही में नादान लिखता रहा ....
..... कुमार शशि.....
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡
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