संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
ये पाप है क्या ये पुन है क्या रीतों पर धर्म की ठहरें हैं
हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे
ये भूक भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
हम कहते हैं ये जग अपना है तुम कहते हो झूटा सपना है
हम जन्म बिता कर जाएँगे तुम जन्म गँवा कर जाओगे
हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे
ये भूक भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
हम कहते हैं ये जग अपना है तुम कहते हो झूटा सपना है
हम जन्म बिता कर जाएँगे तुम जन्म गँवा कर जाओगे
-------साहिर लुधियानवी
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