सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए : राहत इंदौरी - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
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सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए : राहत इंदौरी

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Poetry by Dr.Rahat Indori. सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़

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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए

कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़

सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए

मस्जिद में दूर-दूर कोई दूसरा न था

हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए


नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र

आँखों में बंद ख़्वाब अगर खुलके आ गए

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार

आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गए

अनजाने साए फिरने लगे हैं इधर उधर

मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए

------  राहत इंदौरी 

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