Mirza Ghalib – मिर्ज़ा ग़ालिब की अनमोल शायरी
और नई शायरी पढ़ें अपनी हिन्दी एवं उर्दू भाषा में हमारे इस ब्लॉगर पर :-The spirit of ghazals-लफ़्ज़ों का खेल
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BEST POETRY OF GHALIB SHAYARI
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया (Ishq Ne Ghalib Nikammaa Kar Diyaa)
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम केहम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
बाद मरने के मेरे (Baad marne ke mere ghar se yeh samaan niklaa)
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत .बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
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दिया है दिल अगर ( Diya hai dil agar us ko, bashar hai kya kahiye)
दिया है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहियेहुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये
यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये
ज़ाहे -करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब
की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है , क्या कहिये
समझ के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश -ऐ -हाल
की यह कहे की सर -ऐ -रहगुज़र है , क्या कहिये
तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल
हमारे हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये
कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये
कोई दिन और (kash ke tum mere liye hote)
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहेंचल निकलते जो में पिए होते
क़हर हो या भला हो , जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिए होते
मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’
कोई दिन और भी जिए होते
दिल-ऐ -ग़म गुस्ताख़ (Dil-AE-Gham gushtah magar yaad aaya)
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्यालदिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है .
दश्त को देख के घर याद आया
हसरत दिल में है (sadagi par us ke mar jane ke hasrat dil mein hai)
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में हैबस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है
बज़्म-ऐ-ग़ैर (meh wo kyon bahut pite bazm-e-ghair mein yarab)
मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रबआज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना
एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी ( Ek Din Apni Saans Bhi Bewafa Ho Jaegi)
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिबयह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी
सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे (Sari Umar Apna Qasoor Dhoondte Rahe)
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिबके सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
इश्क़ में
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिबजिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
जवाब
क़ासिद के आते -आते खत एक और लिख रखूँमैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
जन्नत की हकीकत
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिनदिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब
फिर उसी बेवफा पे मरते हैंफिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
शब-ओ-रोज़ तमाशा
बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगेहोता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
कागज़ का लिबास
सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबासजिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
अदल के तुम न हमे आस दिलाओ
क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले
वो निकले तो दिल निकले
ज़रा कर जोर सीने पर की तीर -ऐ-पुरसितम् निकले जोवो निकले तो दिल निकले , जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के वास्ते
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिमकहीं ऐसा न हो जहाँ भी वही काफिर सनम निकले
तेरी दुआओं में असर
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखानहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख
जिस काफिर पे दम निकले
मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने काउसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले
लफ़्ज़ों की तरतीब
लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब”हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है
तमाशा
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ
काफिर
दिल दिया जान के क्यों उसको वफादार , असदग़लती की के जो काफिर को मुस्लमान समझा
नज़ाकत
इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्याहाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने
तनहा
लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन औरतनहा गए क्यों , अब रहो तनहा कोई दिन और
रक़ीब
कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीबगालियां खा के बेमज़ा न हुआ
कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब ‘ गजलसारा न हुआ
मेरी वेहशत
इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सहीमेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही
कटा कीजिए न तालुक हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही
ग़ालिब
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गईदोनों को एक अदा में रजामंद कर गई
मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को
वो वलवले कहाँ , वो जवनी किधर गई
तो धोखा खायें क्या
लाग् हो तो उसको हम समझे लगावजब न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या
अपने खत को
हो लिए क्यों नामाबर के साथ -साथया रब ! अपने खत को हम पहुँचायें क्या
उल्फ़त पैदा हुई है (ulfat paida hue hai )
उल्फ़त पैदा हुई है , कहते हैं , हर दर्द की दवायूं हो हो तो चेहरा -ऐ -गम उल्फ़त ही क्यों न हो .
ऐसा भी कोई
“ग़ालिब ” बुरा न मान जो वैज बुरा कहेऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे
नादान हो जो कहते हो (Naadan ho jo kahte ho)
नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब “किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और
जिस की किस्मत में हो आशिक़ का गरेबां होना (Jis Ki Qismat Main Ho Ashiq Ka Greeban Hona)
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की किस्मत ग़ालिबजिस की किस्मत में हो आशिक़ का गरेबां होना
इश्क़
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिबकिस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद
शमा
गम -ऐ -हस्ती का असद किस से हो जूझ मर्ज इलाजशमा हर रंग मैं जलती है सहर होने तक ..
तहय्या -ऐ -तूफ़ान (tahayyaa-e-tuufaa)
ग़ालिब ‘ हमें न छेड़ की फिर जोश -ऐ -अश्क सेबैठे हैं हम तहय्या -ऐ -तूफ़ान किये हुए
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