कुछ नहीं है आज मेरे शब्दों के गुलदस्ते में,
कभी कभी मेरी खामोशियाँ भी पढ लिया करो…!!
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लिखना कठिन नहीं है,
गफलत है किस पर लिखूं। खुद पर, या किसी और पर .
गफलत है किस पर लिखूं। खुद पर, या किसी और पर .
यहां हर इंसान एक मुद्दा है और उसके हर बोल समस्या। समस्या की गुत्थी हम और आप हर रोज चाय की चुस्की के साथ सुलझाते हैं।
हर गुत्थी को सुलझने के बाद हमें मिल जाता है
लिखना एक हुनर है, और लिखावट को किसी के दिल में उतार देना एक तपस्या। लोग कहते हैं मैंने अपनी जुबान दी, कई सरकारें भी देती हैं, पर मुंह जुबानी बात का सबूत नहीं होता। ठीक वैसे ही जैसे किसी को दिए गए उधारी का कोई सबूत नहीं होता। भरोसे पर जुबान की कीमत कायम है। लिखी बात दस्तावेज होती है, कानूनी सबूत। भरोसा बनाए रखने के लिए लेख मायने रखती है।
लेकिन धोखा तो ये भी देते हैं। लेख और बोल बिल्कुल ऐसे हैं जैसे धरती और आसमान, जो कभी नहीं मिलते लेकिन बहुत दूर ये एक-दूसरे से मिलते प्रतीत होते हैं।
हम इनका पीछा करते हैं लेकिन ये हमसे और दूर होते जाते हैं। हमारे हुक्मरानों के बोल और लेख धरती-आसमान माफिक ही होते हैं, एक दूसरे से कभी न मिलने वाले।
इसे आप अपनी जिंदगी से जोड़ सकते हैं, बच्चों की जिद्द को टालने के लिए हम कुछ कहकर बहला देते हैं।
लकिन अब तक नहीं पता चला कि किस पर लिखु दोस्तों आप जरू बातये की मे किस पर लिखू...
...कुमार शशि®™.....
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡
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