​कच्चा-पक्का मकान था अपना . फिर भी कुछ तो निशान था अपना.....✍ - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
​कच्चा-पक्का मकान था अपना . फिर भी कुछ तो निशान था अपना.....✍

​कच्चा-पक्का मकान था अपना . फिर भी कुछ तो निशान था अपना.....✍

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​कच्चा-पक्का मकान था अपना
फिर भी कुछ तो निशान था अपना
अपना तुमको समझ लिया हमने 
तुम भी लेते समझ हमें अपना
वो भी गैरों*-सी बात करने लगे
जिनके होंठों पे नाम था अपना
है पीपल ना पेड़ बेरी का
ये शहर है, वो गांव था अपना
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं
शायद ये ही मुकाम था अपना
..... कुमार शशि.....
#_तन्हा_दिल...✍Meri Qalam Mere Jazbaat♡

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