Teergi chand ke jeene se sahar tak pahunchi (राहत इन्दौरी – तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची)
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Teergi chand ke jeene se sahar tak pahunchi
Zulf kandhe se jo sarki to kamar tak pahunchi
Zulf kandhe se jo sarki to kamar tak pahunchi
Maine poochha tha ki ye haath me pat’thar kyo hai
Baat jab aage badi to mere sar tak pahunchi
Baat jab aage badi to mere sar tak pahunchi
Maine to soya tha magar baarahaa tujh se milne
Jism se aankhe nikal kar tere ghar tak pahunchi
Jism se aankhe nikal kar tere ghar tak pahunchi
Tum to sooraj ke pujaari ho tumhe kya maalom
Raat kis haal me Kat-Kat ke sahar tak pahunchi
Raat kis haal me Kat-Kat ke sahar tak pahunchi
Ek shab aesi bhi gujari hai khyaalon me tere
Aahaten zazb kiye raat sahar tak pahunchi
Aahaten zazb kiye raat sahar tak pahunchi
देवनागरी में पढ़ें
तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची
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