Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Roz Puchunga Tumse in Hindi - The Spirit of Ghazals - लफ़्ज़ों का खेल | Urdu & Hindi Poetry, Shayari of Famous Poets
Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Roz Puchunga Tumse in Hindi

Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Roz Puchunga Tumse in Hindi

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Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Roz Puchunga Tumse

मेरे कुछ सवाल हैं, जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे


 Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Roz Puchunga Tumse मेरे कुछ सवाल हैं, जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे
मेरे कुछ सवाल हैं,
जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम
मैं जानना चाहता हूँ
क्या उसके साथ चलते हुए   , शाम को यूं ही
बेख़याली में हाथ टकरा जाता है तुम्हारा  ?
क्या अपनी छोटी अँगुलियों से हाथ थाम लिया करती हो क्या वैसे ही, जैसे मेरा थामा करती थीं ?

क्या बता दी सारी बचपन की कहानियां तुमने उसे
जैसे मुझे रात भर बैठ कर सुनाईं थी तुमने
क्या तुमने बताया उसको कि तीस के आगे की हिंदी की गिनती आती नहीं है तुम्हे
वो सारी पापा और छोटी बहन के साथ वाली तस्वीरें
जिनमे तुम बड़ी प्यारी लगती थी
क्या उसे भी दिखा दीं तुमने

ये कुछ सवाल हैं
जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे..
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम

मैं पूछना चाहता हूँ की वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको
तो सीढ़ियों पर आँखे मींचकर क्या मेरी ही तरह
उसके सामने भी माथा आगे कर देती हो
वैसे ही जैसे मेरे सामने करती थीं
सर्द रातों में, बंद कमरो में तुम्हारी पीठ पर
क्या वो भी मेरी तरह अपनी उंगलियो से
हर्फ़ दर हर्फ़ अपना नाम गोदता है
तुम भी अक्षर दर अक्षर
उसे पहचानने की कोशिश करती हो क्या
वैसे ही जैसे मेरे साथ किया करती थीं   ?
ये कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके  ,
इस लायक नहीं हो तुम
-
#ज़ाकिर खान

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